आनंद श्रीकृष्ण की यह पुस्तक.....इस विश्व परिवार की सीमाओं और विशेषताओं के साथ-साथ बुद्धा के विचारों का भी मूल्याङ्कन करती है। यह किताब एक तरफ विश्व परिवार के अंतर विरोधों को रेखांकित करने का प्रयास करती है, तो दूसरी तरफ बौद्ध दर्शन की सामाजिकता को भी स्पष्ट करती है। लेखक की सफलता इस बात में है की उपदेश-कथन से अधिक वे ज्ञान के व्यावहारिक पक्ष में विशवास रखते हैं।